कल दिल्ली हाइकोर्ट परिसर में हुए विस्फोट में मारे गए युवक के दुखी पिता ने दहशतगर्दी को देश में सर्वत्र व्याप्त भ्रष्टाचार से जोड़ा और भ्रष्ट नेताओं को इसके लिए जिम्मेदार बताया। दुख की उस घड़ी में इस प्रकार के उदगार आम इंसान की बेबसी व उसकी छटपटाहट का आभास कराते हैं। वास्तव में यदि अपने देश में भ्रष्टाचार का दीमक न लगा हो गरीबों के लिए बनी सभी योजनाओं का लाभ उन तक पहुचे। यानि भूमिहीनों को इमानदारी से भूमि के पट्टे मिल जांय। रोजगार विहीनों को रोजगार योजनाओं के तहत रोजगार के साथ साथ तय न्यूनतम् मजदूरी मिले। बेघरों को बिना घूस दिये आवास मिले। सरकार द्वारा बनाए गए आवासों की गुणवत्ता हो। हर शिक्षण संस्थान में शिक्षक नियमितरूप से कक्षा में पढ़ाएं।परीक्षाओं में पास होने के लिए नकल का सहारा न लेना पड़े। हर बच्चे को बिना जान पहचान लगाए या डोनेशन दिये अपने पड़ोस के विद्यालय में दाखला मिले। हर विद्यालय की गुणवत्ता समान हो। विद्यालयों में जाति,धर्म,लिंग आदि के आधार पर भेदभाव न किया जाय।
किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य मिले। सरकार उनके हितों का संरक्षण तथा संबर्धन करे।बैंकों से ऋण लेने, बीज आदि की व्यवस्था में पारदर्शिता हो। स्वास्थ्य केंद्रों में व्याप्त भ्रष्टाचार समाप्त होजाय। डाक्टर गावों में जाकर इलाज करें । कमिशनखोरी बंद होजाय। दवाइयां मरीजों को मिलें न कि चोरी से बाजार में बिकें।
नौकरी पाने के लिए, राशन कार्ड बनाने के लिए, घूस न देनी पड़े । पुलिस बिना घूस खाए सुरक्षा प्रदान करे तो समझो भारत स्वर्ग होगया। ऐसे भारत में कौन बम फोड़ने का दुस्साहन करेगा। परन्तु ऐसा भारत बनाना अपने आप में दुस्साहस का काम है।
गुरुवार, 8 सितंबर 2011
रविवार, 28 अगस्त 2011
अन्ना हजारे तथा उनके समर्थकों पर संसद की गरिमा भंग करने का आरोप बार बार लगता रहा। हर बार मन बरबस कमजोर माने जाने वाले आम आदमी की तुलना पितृसत्ता के तहत दमित शोषित नारी से करने लगा। कारण कुल परिवार की मर्यादा की रक्षा का भार भी इसी बेचारी नारी पर होता है। कुल की मर्यादा की रक्षा के विए उससे कभी सती सीता सावित्री की भूमिका तो कभी काली की भूमिका की अपेक्षा की जाती रही है। परंतु खुद की रक्षा करने में उसको हमेशा ही असमर्थ रखा गया है ताकि वह पीढ़ी दर पीढ़ी पुरुष पर निर्भर रहै। कमोवेश यही भूमिका व्यवस्था के रखवैालों तथा कुछ बुद्धिजीवियों द्वारा आम आदमी के लिए गढ़ी जारही थी। अपने लिए एक मजबूत लोकपाल कानून को एक निश्चित अवधि में पास करने की उसकी मांग को संसद की अवह्वेलना के रूप में प्रचारित किया गया। परंतु सासदों के संसद में असंसदीय आचरण पर कोई अगुली लहीं उठीई गई।
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