शुक्रवार, 29 मई 2015

नन्हीं चिड़िया की मार्मिक कहानी



नन्हीं चिड़िया की मार्मिक कहानी


चार दिन पहले वह अपने भाई बहिनों के साथ अपने घोंसले में रह रही थी। मुझे हवा तक नहीं थी कि मेरे स्टोर की खिड़की के सिल में उसके माता पिता ने बड़ा सा घोंसला बनाया था। सोमवार 25 मई की सुबह सहायिका घबराई हुई आई और बताया कि जब उसने उस कमरे में झाड़ू लगाया सब कुछ ठीक ठाक था। लेकिन अब वहां पर एक चिड़िया का बच्चा अपने घोंसले के एक हिस्से समेत नीचे गिरा है। मैं उसके साथ देखने गई तो पाया यह बाचाल बच्चा घबाराया हुआ जोर जोर से चिल्ला रहा था। हमें देख कर वह आक्रमक होगया और दन्तविहीन चोंच से काटने की धमकी देरहा था।।हमारी पहली चुनौती उसको स्टोर रूम से बाहर निकालना था ताकि वह डर के मारे किसी कोने में नहीं दुबक जाए और बिना दाना पानी के मर जाए। वह बहुत घबराया हुआ था।उसको चोट भी आई थी। वह किसी भी कीमत पर वहां से बाहर नही आना चाहता था। बड़ी मुश्किल से उसे बरामदे में लाए। अपनी पोपली चोंच से वह हमें काटने आरहा था,जोर जोर से चीं चीं चिल्ला रहा था और स्टोर में वापस जाने की कोशिश कर रहा था। बरामदे में भी वह हमारी छाया से भी दूर भाग रहा था। चोट के बावजूद एक किनारे से दूसरे किनारे भाग रहा था। मैंने उसके लिए वहां पर दाना पानी रखा । पर वह इतना छोटा था कि खुद से दाना पानी खाना पीना नही जानता था। सारे दिन वह मुझे अपना दुश्मन ही समझ रहा था।शाम तक भूख ने डर पर विजय पा ली थी। बरामदे में गमले के पीछे से उसने मुझे देखते ही अपना पोपला मुह खोल दिया। मुझे  समझ में नहीं आया कि उसे कैसे और क्या खिलाया जाय। मैं ने मां से पूछा।  मां ने कहा उबला आलू मसल के खिला दो। उसने आलू खाया पानी पिया और एक कोने में छुप गया। दूसरे दिन उसी कोने से वह आपना पोपला मुह खोल कर खाना मांगने लगा। उस कोने तक हमारी हाथ नहीं पहुचता था। इसलिए हम उसका वहां से निकलने का इंतजार करते रहे। दुश्मनी समाप्त होगई थी। अब वह हम पर विश्वास करने लगा था।थोड़ी सी देर में वह कमरे के दरवाजे पर था और हमें देखते ही अपना प्यारा सा पोपला मुह खोल दिया। मेरी मां ने उसे आलू खिलाया पानी पिलाया और वह हमारे परिवार का हिस्सा बन गया। अब उसको हमसे कोई डर नही था।मैंने उसको बैत की टोकरी में रख दिया। लेकिन चैन से बैठना उसके स्वभाव में नही था। उसके पांव व पंखे चोटिल थे फिर भी वह उस टोकरी से बाहर निकल आया।उसको हमसे बहुत सारी बातें करनी थी।इसलिए कमरे में वह मेरे पीछे पीछे चूं चूं करता  आरहा था। उसका ब्यवहार उस छोटे से पिल्ले की तरह था जो हर समय अपने मालिक का प्यार पाने के लिए उसके आगे पीछे दुम हिलाते चलता रहता है।  यह बच्चा भी न जाने क्या क्या कहना चाह रहा था।हर समय चौकन्ना हमें देखते ही प्यारा सा पोपला मुह खोल देना,या चूं चूं करना। खाना पसन्द नही आया तो गर्दन झटक कर थूक देता। फौन पर बात करने पर भी वह पांव के पास खड़ा होकर चूं चू करता रहता था। कुछ पढ़ने लगू तो चप्पलों के पास बैठ जाता।टोकरी में चुपचाप आराम करना  उसको बिलकुल नहीं भा रहा था। कल जिस सहायिका को डर के मारे पोपली चौंच से काटने जारहा था आज उसको काम करते जाते देखते ही प्यार से पोपली चोंच खोल देता और कुछ खिलाने का आग्रह करता। पड़ोसियों के साथ भी उसकी खूब बातचीत हुई। यदि वे मुझसे बात करने लग जाते तो वह जोर जोर से चूं चूं करने लगता। पुचकारने पर शांत हो जाता। फिर गरदन लम्बी करके पोपला मुह खोल देता।

आलू से अब वह बिस्कुट पर आगया था। बड़े मन से खाना पानी मेरी मां के हाथ से खाता। पेट भर जाने पर मुह बन्द कर देता। परसों रात यानी मंगलवार 26 मई वह अपनी टोकरी में सोया। बुधवार की सुबह उठा ठीक ठाक खाना खाया। लेकिन दिन में सोता रहा। हमने सोचा थका होगा।शाम को भी सुस्त था। पर खाना खाया। रात को सो गया।बीरवार की सुबह वह पस्त पड़ा था। उसने आखें भी नहीं खोली। धीरे धीरे उसकी हालत बिगड़ती गई सुबह नौ साढ़े नौ बजे उसने आखरी पौटी की और दम तोड़ दिया।  अंतिम समय जानकर मेरी मां ने उसके सामने बैठकर गीता पाठ किया।सहायिका ने उसे मिट्टी में दफनाया। शायद अपने धर्म के अनुसार कोई प्राथना की हो। इस चिड़िया के साथ बिताए तीन दिनों में एक एहसास बार बार सालता रहा कि हम चिड़ियों के बार में कितना कम जानते हैं।मां नही होती तो चाह कर भी मैं उसको खाना नहीं खिला सकती। मुझे सत्यजीत रे की बच्चों की कहानियां याद आती हैं जिनके कई नायक पक्षियों की तथा जंगली जानवरों की भाषा बोलना जानते ।   नन्ही चिड़िया तुझको सलाम।

सोमवार, 11 मई 2015

AIN'T I A WOMAN?

आज(11,5,15) शाम 8 बजे के न्यूज 24 के समाचारों में बिहार के एक गांव में एक दलित महिला को डायन बताकर उस पर बरबर अत्याचार करने का बीडियो दिखाया गया। जिसमें बताया गया कि लगभग सारे गांव के लोगों ने भाग लिया और किसी ने इसका विरोध किया। इससे भी अधिक दुर्भाग्य की बात यह है कि दलित आदिवासी व गरीब अल्पसंख्यक समुदाय की महिलाओं के साथ होने वाले अत्याचारों पर संभ्रांत नागरिक समाज की प्रतिक्रिया भी नगण्य ही होती है। जब भी इस प्रकार की घटनाओं के समाचार आते हैं नागरिक समाज की चुप्पी Sojourner Truth का वीमन्स कनवन्सन, आक्रन, ओहायो में, 1851 में दिया गया भाषण AIN'T I A WOMAN? याद आता है।

गुरुवार, 7 मई 2015

महिला आयोग की महिला अधिकारों की समझ
दिल्ली महिला आयोग ने विरोधी दल की एक कार्यकर्ता की शिकायत पर फटाफट अमल करते हुए उसी दल को राष्ट्रीय स्तर के नेता को अपने दफ्तर में बुलाया। कार्यकर्ता चाहती है कि ये नेता महोदय तथाकथित का पति उन पर विश्वास कर फिर से महिला को अपना लें।यह प्रस्ताव ही महिला आंदोलन की जड़ों में मटठा डालता है और महिला को क्रमशः उसके पिता, भाई, पति व पुत्र की संपत्ति की भूमिका में पेश करता है। समूचे विश्व के देशों में महिला अधिकार का मूल मंत्र महिला का उसके स्वयं के शरीर, दिल व दिमाग पर पूर्ण नियंत्रण रहा है। उसे अपने संबंधों के बारे में न तो किसी से इजाजत लेने की आवश्यकता होनी चाहिये न किसी के सर्टिफिकेट की। ऐसे में भा.ज.पा. महिला शाखा का उस कार्यकर्ता की मांग के समर्थन में केजरीवाल के घर प्रदर्शन पूरे महिला आंदोलन की तौहीन है। लेकिन महिला आयोग तो एक संवैधानिक संस्था है। देश की राजधानी में धड़ल्ले से इसका इस्तेमाल श्रुद्र राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए किया जाना या महिला समानता विरोधी कार्यों को प्रोत्साहन देने के लिए किया जाना महिला आयोग के विधान का उल्लंघन है। क्या इसके विरुद्ध कोई कानूनी कार्यवाही नहीं होना चाहिये।