महिला आयोग की महिला
अधिकारों की समझ
दिल्ली महिला आयोग ने
विरोधी दल की एक कार्यकर्ता की शिकायत पर फटाफट अमल करते हुए उसी दल को राष्ट्रीय
स्तर के नेता को अपने दफ्तर में बुलाया। कार्यकर्ता चाहती है कि ये नेता महोदय
तथाकथित का पति उन पर विश्वास कर फिर से महिला को अपना लें।यह प्रस्ताव ही महिला
आंदोलन की जड़ों में मटठा डालता है और महिला को क्रमशः उसके पिता, भाई, पति व पुत्र
की संपत्ति की भूमिका में पेश करता है। समूचे विश्व के देशों में महिला अधिकार का
मूल मंत्र महिला का उसके स्वयं के शरीर, दिल व दिमाग पर पूर्ण नियंत्रण रहा है।
उसे अपने संबंधों के बारे में न तो किसी से इजाजत लेने की आवश्यकता होनी चाहिये न
किसी के सर्टिफिकेट की। ऐसे में भा.ज.पा. महिला शाखा का उस कार्यकर्ता की मांग के
समर्थन में केजरीवाल के घर प्रदर्शन पूरे महिला आंदोलन की तौहीन है। लेकिन महिला
आयोग तो एक संवैधानिक संस्था है। देश की राजधानी में धड़ल्ले से इसका इस्तेमाल श्रुद्र
राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए किया जाना या महिला समानता विरोधी कार्यों को
प्रोत्साहन देने के लिए किया जाना महिला आयोग के विधान का उल्लंघन है। क्या इसके
विरुद्ध कोई कानूनी कार्यवाही नहीं होना चाहिये।
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