रविवार, 28 अगस्त 2011
अन्ना हजारे तथा उनके समर्थकों पर संसद की गरिमा भंग करने का आरोप बार बार लगता रहा। हर बार मन बरबस कमजोर माने जाने वाले आम आदमी की तुलना पितृसत्ता के तहत दमित शोषित नारी से करने लगा। कारण कुल परिवार की मर्यादा की रक्षा का भार भी इसी बेचारी नारी पर होता है। कुल की मर्यादा की रक्षा के विए उससे कभी सती सीता सावित्री की भूमिका तो कभी काली की भूमिका की अपेक्षा की जाती रही है। परंतु खुद की रक्षा करने में उसको हमेशा ही असमर्थ रखा गया है ताकि वह पीढ़ी दर पीढ़ी पुरुष पर निर्भर रहै। कमोवेश यही भूमिका व्यवस्था के रखवैालों तथा कुछ बुद्धिजीवियों द्वारा आम आदमी के लिए गढ़ी जारही थी। अपने लिए एक मजबूत लोकपाल कानून को एक निश्चित अवधि में पास करने की उसकी मांग को संसद की अवह्वेलना के रूप में प्रचारित किया गया। परंतु सासदों के संसद में असंसदीय आचरण पर कोई अगुली लहीं उठीई गई।
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