जनता को भरमाने की राजनीति कब तक
हिमालय
आग में जल रहा है। मैदानी भाग पानी पानी कराह रहा है। संसद का अधिवेशन चल रहा है।
सरकार के पास विपक्षी दलों के साथ मिल कर जनता की इन कठिन समस्याओं का फ़ौरी
तथा दीर्घ क़ालीन समाधान खोजने का सुनहरा अवसर था। दुर्भाग्य से आमजन के
सरोकार देश की सरकारों की प्रार्थमिकता नहीं रह गए हैं। सभी राजनीतिक दल जनता को
भ्रमजाल में फँसाए रखना चाहते हैं। २०१४ का आम चुनाव भ्रष्टाचार को समाप्त करने के
वादे पर लड़ा गया। प्रधान मंत्री के उम्मीदवार अपनी सभाओं में भ्रष्टाचार के
मामलों के समयबद्ध निपटारे तथा भ्रष्टों को शीघ्र ही सलाखों के पीछे डालने का वादा
करते रहे। लेकिन जिस कांग्रेस को उन्होंने भ्रष्ट बताया और कांग्रेस मुक्त भारत का
अलोकतांत्रिक नारा लगाया उसी कांग्रेस के नेताओं को भाजप के टिकट पर चुनाव
लड़ाया। उन्होंने यह बताने की भी जरुरत नहीं समझी कि किस मापदंड के आधार पर ये
नेता इमानदार हॆ।अच्छे दिनों की उम्मीद में जनता ने भी कोई सवाल नहीं पूछे।
चुनाव के बाद सत्तासीन लोगों के अलावा किसी के भी अच्छे दिन तो आए
नहीं। भ्रष्टाचार के मामलों के समयबद्ध निपटारे का वादा सरकार भूल गई।भूलना ही था
। भष्टाचार नहीं रहेगा तो जनता को भरमाएँगे कैसे। विपक्षी से अपनी कमीज को अधिक
सफेद कैसे बताएंगे। दो साल बाद जब सोगों को विश्वास हो गया कि एक बार फिर वे ठगे
गए। बिल्ली के भाग से छींका टूट गया।इटली की एक अदालत ने अगुस्तावैस्टलॆड के मामले
में घूस देने वालों को सज़ा दी तो हमारे जन प्रतिनिधियों ने एक बार फिर भ्रष्टाचार
का मामला मायूस लोगों को भरमाने के लिए उछाल दिया।सत्तासीन दल भूल गया है कि वह
सत्ता में है और उसका कर्तव्य राजनीतिक बयान देना नहीं है वरन अपने तंत्र की मदद
से सारे भ्रष्टों पर नकेल कसना है।लेकिन यह वह कर नहीं सकता।उसने भ्रष्टों से कभी
परहेज़ नहीं किया है। वहां भ्रष्टों तथा अपराधियों की कमी नही है। अत: राजनीतिक
बयानबाज़ी से जनता के अलावा कुछ कर नही सकते। जनता को भरमाने का यह मिशन जारी है।
लेकिन आज बड़ी विकट स्थिति है। पूरे देश के तेरह राज्यों अकाल है
यहसरकार ने सुप्रीम कोर्ट को लिख कर बताया है। स्वराज अभियान का कहना है कि कई और
राज्य भी गंभीर सूखे का सामना कर रहे हैं। परंतु पता नहीं किन कारणों की वजह से
उनको सूखाग्रस्त नहीं घोषित किया गया है। सरकार कहती है 33 करोड़ लोग गंभीर पानी
के संकट का सामना कर रहे हैं। स्वराज अभियान यह आँकड़ा 54करोड़ बताया है। यह संकट अप्रत्याशित
भी नहीं है। स्वराज अभियान पिछले आठ दस महीने से विभिन्न माध्यमों से सरकार, प्रशासन तथा नागरिक समाज को आगाह करने की
कोशिश कर रहा है कि देश का बड़ा भूभाग सूखे की चपेट में आने वाला है। परंतु
पूरा सरकारी तंत्र कान में तेल डाल कर सोया रहा। मीडिया भी मध्यवर्गीय शहरी या
भावनात्मक (sensational) मुद्दों को उठाकर अपनी टी पी बढ़ाने को ही प्राथमिकता देता रहता है।
अब मीडिया तो जाग गया है। रोज़ किसी न किसी चैनल पर पानी के लिए जाती कुपोषित , अंगारे जैसी धरती पर नंगे पाँव जाते बच्चे, औरतें तथा लड़कियाँ दिखाई जाती हैं। मीडियां
में दिंखाई जा रही इन हृदयविदारक दृश्यों से हमारी सरकारों (केंद्र तथा राज्य)
दोनों के दिल नहीं पसीजे हैं। सूखाग्रस्त क्षेत्रों में विभिन्न राजनीतिक दलों के
मंत्रियों व मुख्य मंत्रियों को धूल मिट्टी से बचाने के लिए हवांई पट्टी पर हजारों
लीटर पानी छिड़के जाने के समाचार मीडीया में आते रहते हैं। २४ अप्रेल को प्रधान
मंत्री (जो स्वंय को प्रधान सेवक भी कहतेहैं।) ने मन की बात में भी पानी के लिए
तरस रह लोगों के लिए कोई आश्वासन नहीं था। हाँ उन्होंने मौसम विभाग की अच्छी बरसात
की भविष्यवाणी दुहरा दी। बरसात के पानी के संचयन के कुछ लोगों के निजी प्रयत्नों
का ज़िक्र कर प्रधान सेवक जी ने यह संदेश भी अप्रत्यक्षरूप से दे दिया कि पानी का
इंतज़ाम करना इंसानों की निजी ज़िम्मेदारी है।
ndtv ने दो अप्रेल को बताया कि प्रधान मंत्री ने
अपने सांसदों को सरकार के काम का ठीक से प्रचार नहीं करने के लिए क्लास ली। समझ
में नहीं आया जब लोग पानी के लिए त्राहि त्राहि कर रहे हैं केवल लातूर को पानी की
रेल भेजने के अलावा सरकार ने कोई काम नहीं किया है(रवीश कुमार ने अपने एक प्राइम
टाइम में बताया कि लातूर में यह पानी लातूर शहर के लिए है । गांव के लोग आज भी
पानी के लिए तड़प रहे हैं।) तो सांसद अपने निर्वाचने क्षत्रों के प्यासे लोगों को
क्या उपलब्धियों बताएँगे। बड़ी अजीब बिडम्बना है। अधभूखे लोगों को पानी के लिए
संघर्ष करते देखो तो देश के लोगों की दुर्दशा पर मन दुखी होता है। पर जब संसद आते
जाते चिकने चुपड़े सांसदों को देखो तो लगता है भ्रष्ट कांग्रेसियों के अलावा देश
के सामने कोई समस्या नहीं हो।अघाए लोग इन कांग्रेसियों के साथ नूरा कुस्ती कर अपना
व अघाई हुई जनता का मन बहलाते हैं। भला हो राजनीति में भ्रष्टाचार का इसने साफ
सुथरी राजनीति का वादा कर कइयों को सत्ता का स्वाद चखा दिया।
सबसे पहले वी पी सिंह ने बोफ़ोर्स का मुद्दा उठाया। चुनाव के समय ऐसा
माहौल बनाया कि लगा सत्ता में आते ही वे दूध का दूध पानी का पानी कर देंगें।सत्ता
में आने के बाद कुर्सी बचाने के लिए वह मंडल कमंडल के चक्कर में फँस गए। बेचारी
जनता को संप्रदायिक दंगों की आग मे झुलसना पड़ा। उसके बाद विपक्ष में रह कर
भ्रष्टाचार के आरोप लगाना, सत्ता पाते ही भूल
जाना राजनीतिक दलों का सहगल हो गया है। वे बेचारे करें भी क्या । जनता के सामने वे
चाहे एक दूसरे की कितनी ही टाँग क्यों न खींचें खाने पीने के मामले में वे
एक ही होते हैं। इसलिए जितने भी घोटाले हुए हैं उनमें सत्ता पक्ष और विपक्ष के लोग
दोनों ही लिप्त पाए जाते हैं। कोई भी दल यह दावा नहीं कर सकता है कि उसके
सांसद व विधायकों में बाहुबली नहीं हैं। सभी के कुछ जनप्रतिनिधियों के विरुद्ध
गम्भीर अपराधिक मामले दर्ज हैं।सभी के हित में है कि समयबद्ध तरीक़े से न्यायालयों
में इन मामलों का निपटारा न हो। इसीलिए प्रधान सेवक जी भी अपने इस वादे को
भूल गए। अत: जनता को भरमाने के लिए ही भ्रष्टाचार की हवा तो बनाई जाती है। सत्ता
पाने के बाद कोई ठोस कदम नहीं उठाए जाते हैं। लेकिन जनता कब तक भरमाई जाती रहेगी।