नन्हीं चिड़िया की
मार्मिक कहानी
आलू से अब वह बिस्कुट पर आगया था। बड़े मन से खाना पानी मेरी मां के हाथ से खाता। पेट भर जाने पर मुह बन्द कर देता। परसों रात यानी मंगलवार 26 मई वह अपनी टोकरी में सोया। बुधवार की सुबह उठा ठीक ठाक खाना खाया। लेकिन दिन में सोता रहा। हमने सोचा थका होगा।शाम को भी सुस्त था। पर खाना खाया। रात को सो गया।बीरवार की सुबह वह पस्त पड़ा था। उसने आखें भी नहीं खोली। धीरे धीरे उसकी हालत बिगड़ती गई सुबह नौ साढ़े नौ बजे उसने आखरी पौटी की और दम तोड़ दिया। अंतिम समय जानकर मेरी मां ने उसके सामने बैठकर गीता पाठ किया।सहायिका ने उसे मिट्टी में दफनाया। शायद अपने धर्म के अनुसार कोई प्राथना की हो। इस चिड़िया के साथ बिताए तीन दिनों में एक एहसास बार बार सालता रहा कि हम चिड़ियों के बार में कितना कम जानते हैं।मां नही होती तो चाह कर भी मैं उसको खाना नहीं खिला सकती। मुझे सत्यजीत रे की बच्चों की कहानियां याद आती हैं जिनके कई नायक पक्षियों की तथा जंगली जानवरों की भाषा बोलना जानते । नन्ही चिड़िया तुझको सलाम।