सोमवार, 13 फ़रवरी 2012

स्थानीय मुद्दे कहां है

टी वी चैनलों में उत्तर प्रदेश चुनाव पर चल रही बहसों, राजनीतिक दलों के जनता से किये जारहे वादों में स्थानीय मुद्दे किस प्रकार गायब रहते हैं इसका एक नायाब उदाहरण मेरठ से बह रही काली नदी(ईस्ट) का प्रदूषण है। डाउन टु अर्थ में 15,7,2010 में छपी रपट के अनुसार यह नदी इस क्षेत्र के औद्योगिक कचरे तथा बूचड़खाने की गंदगी की वजह से नाले में तबदील होगई है। कागजों में प्रदूषण रोकने के इंतजाम दर्ज हैं। वास्तव में वे काम नही करते। इन औद्योगिक इकाइयों तथा कसाईखाने के विरुद्ध इनके रसूख की वजह से कोई कारवाही नहीं होती। पिछली विधान सभा में कसाईखाने का मालिक बी एस पी से चुनाव जीता था। इस बार मायावती ने दरवाजा दिखा दिया तो अजीत सिंह ने टिकट थमा दिया। गठबंधन की वजह से काग्रेस का यहां से कोई उमीदवार नहीं है।बाकी राजनीतिक दलों के लिए एक भ्रष्ट और दलबदलुए को टिकट दिया जाना कोई मुद्दा नहीं है। एक नदी को मौत पर कोई हैरान परेशान नहीं है। यही नही नदी के इस प्रदूषण ने भूजल को भी प्रदूषित कर दिया है। जिससे लोगों के स्वास्थ्य पर कुप्रभाव पड़ रहा है। इन चुनावों में राष्ट्रीय स्तर पर भ्रष्टाचार को एक मुद्दा बनाने की कोशिश का भी ऐलान किया गया। पर वास्तव में यह मुहिम या तो एक परिवार की आलोचना तक सिमट गई है या गरीब गुरबों को विदेशों में जमा धन वापस लाकर प्रति परिवार को 25 लाख रुपये का मालिक बनने का सपना दिखाने तक।किस तरह से भ्रष्टाचार पर्यावरण प्रदूषण को स्थानीय स्तर पर बढ़ा रहा है तथा आम जन के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहा है इस सवाल पर जनजागरण शायद उतना जायकेदार नही है जितना एक परिवार के सदस्यों पर फब्ती कसना।

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