दागी उमीदवार--
2011 का अंतिम चरण तथा 2012 का प्रथम चरण में पांच राज्यों में चुनावों की गहमा गहमी का रहा है। प्रदेशों के चुनावों में आम तौर पर स्थानीय मुद्दे छाए रहते हैं। परंतु इस बार जन लोकपाल विधेयक तथा विदेशों में जमा चार लाख करोड़ काले धन को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित करना, और उसे वापिस लाना भी शामिल किये गए। राजनीतिक दलों के विभिन्न प्रत्याशियों से इन दोनों मुद्दों पर उनकी सहमति व असहमति लिखित में लेने की कवायद की गई। परंतु इन दलों से दागी उमीदवार चुनाव में नहीं उतारने का अनुरोध किया गया और न हीं उन दागी उमीदवारों के विरुद्ध मुहिम चलाने की धमकी दी गई। नतीजन शायद ही कोई दल है जिसने बड़ी संख्या में दागी उमीदवार चुनाव में नहीं उतारे। इन दागी उमीदवारों से सुसज्जित विधायिकाओं से उपरोक्त दोनों मुद्दों पर किस प्रकार के समर्थन की उमीद भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम चलाने वाले कर रहे हैं?
देश के जवानों की कुरबानी
चूंकि विदेशों में जमा काले धन को लाने के लिए कुरबनी देने की आवश्यकता से नकारा नही जासकता। अतः देश के युवाओं को शहीद पूर्वजों का अनुकरण कर कुरबानी के लिए तैयार रहने के लिए प्रेरित किया जारहा है। लेकिन इतिहास गवाह है हमारे ये शहीद पूर्वज खुद कुर्बान हुए थे। खुद पीछे रहकर उन्होंने देशवासियों से कुरबान होने को नही कहा था। उनकी कुरबानी, (उनके भाषण नहीं) लोगों के लिए नजीर बने थे। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने भी जब देश से आजादी के लिए खून की मांग की थी तब वे स्वय आजादी की जंग में कूद चुके थे। प्रसिद्ध पत्रकार दिवंगत प्रभाष जोशी जी केवल एक बीर का जिक्र बार बार करते थे जिन्होंने खुद पीछे रहकर कइयों को कुरबानी देने के लिए उकसाया। परन्तु खुद कभी कुरबानी देने का साहस नही कर पाए।
युवा क्यों कुरबान हों –युवा तो देश का भविष्य होते हैं। हमें उनकी कुरबानी की बात करनी चाहिये या उनके भविष्य को सवारने। . जवानों की कुरबानी करवाने के बजाय उनका भविष्य सुधारने के लिए समाज कल्याण कार्यक्रमों के तहत देशभक्त पूंजीपतियों से उनके लिए व्यायामशालाएं , रोजगार के लिए शिक्षण प्रशिक्षण संस्थान, पुस्तकालय, आदि की व्यवस्था नही करवानी चाहिये या सब्जबाग दिखाकर उनको दिगभ्रमित करने की।
कालाधन तो देश के भीतर भी है
देश के भीतर के काले धन को निकालने के लिेए क्यों प्रयास नहीं हो रहे हैं यह क्यों नही बताया जाता। क्या काले धन के बगैर औद्योगिक साम्राज्य खड़ा करना संभव है। यदि हां तो दानी उद्योगपतियों तथा व्यापारियों से यह घोषित क्यों नही करवाया जाता कि उनके पास काला धन नहीं है और वे काला धन सफेद करने के लिये दान नही देरहे हैं। यदि देश में केवल सफेद धन से कारोबार करने वालों की सूची ही तैयार होजाय तो यह सुचिता की ओर अग्रसर होने की दिशा में बड़ा कदम होगा।
ये झूठे सपने क्यों –
युवाओं को बताया जारहा है कि विदेशों में जमा काला धन वापस आजाने से उनकी तथा देश की सारी समस्याएं दूर हो जाएंगी। क्यों नही अपने चारों ओर फैले काले धन के साम्राज्य पर पहले अंगुली रखी जाय। उसको बाहर निकाला जाय उससे जनता उपयोगी, पर्यावरण पोषक नीतियां बनाई जांय। देश के भीतर के काले धन को बाहर निकाल कर युवाओं के हित में कार्यक्रम लागू कर एक नजीर क्यों नही पेश की जारही है। एक दल विशेष या एक परिवार विशेष पर ही सारे गलत व सही आरोप लगा कर भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम की धार कुंद ही होरही है।आखिर उस दल तथा उस परिवार का इस देश की दिशा दशा निर्धारित करने में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। जनता में उसकी खासी लोकप्रियता है।
देश का भविष्य पीछे देखकर नहीं आगे देखकर (भविष्य निर्माण की सोच से) सुरक्षित होता है। किस योजना के तहत आखरी इंसान को उसके हक मिल पाएंगे, यह स्पष्ट नहीं है।
विश्व गुरु होने का गर्व क्यों
चूंकि इंसान विवेकशील जीव है। इतिहास के हर बिंदु पर हर समाज के इंसानों ने मानव ज्ञान को बढ़ाने में योगदान दिया है। सभ्यता का इतिहास विभिन्न समाजों के इस योगदान से भरा पड़ा है।विश्व गुरु होने के दंभ में हम अंय समाजों के योगदान को नकारते हैं। इसमें असमानता की बू आती है। तथा दूसरे समाजों से सीखने की मानसिकता भी नहीं रहती। यदि हम दूसरों से नहीं सीखेंगे अपने ही घमंड में चूर रहेंगे नुकसान किसका है।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें