गुरुवार, 28 जनवरी 2016

प्रायश्चित्त करना हमें नहीं आता----




प्रायश्चित्त करना हमें नहीं आता----
दलित शोध छात्र रोहित की आत्महत्या ने कई सवाल खड़े कर दिये हैं। सर्वप्रथम मीडिया में आए सभी दस्तावेज़ दर्शाते हैं कि दो केन्द्रीय मंत्रियों के हस्तक्षेप के बाद विश्वविद्यालय प्रशासन ने आसा से जुडे पाँच दलित छात्रों का प्रताड़न (मसलन सामाजिक बहिष्कार, उनका विश्वविद्यालय से निष्कासन तथा उनकी छात्रवृति के भुगतान को रोक कर) शुरु कर दिया गया। 18 दिसम्बर 2015 को रोहित ने कुलपति को लिखे अपने एक पत्र में हैदराबाद विश्वविद्यालय में दलित छात्रों के साथ भेदभाव पर अपनी हताश मन:स्थिति का ख़ुलासा कर दिया था।इस पत्र में दिवंगत छात्र ने वी सी से अनुरोध किया था कि वी सी दलित छात्रों को विश्वविद्यालय में प्रवेश के समय ही इच्छा मृत्य के लिए ज़हर उपलब्ध कराएँ,तथा छात्रावास के वार्डन के माध्यम से छात्रावास में दलित छात्रों को रस्सी बटवाएं।  परन्तु रोहित की इस हताशा से असंवेदनशील प्रशासन और केन्द्रीय सरकार का दिल नहीं पसीजा। छात्रावास से निकाले जाने के बाद पैसे से मोहताज रोहित व अन्य शोधार्थी खुले आकाश के नीचे सोने को मजबूर कर दिये गए।जब रोहित ने अपनी जान दे दी तो इस दुखद घटना के लिए ज़िम्मेदार तत्व अब इससे अपना पल्ला झाड़ रहे हैं। सत्ताधारी दल के प्रवक्ता ग़लती मानने , प्रायश्चित करने, प्रताड़ित छात्रों को शीघ्र न्याय दिलाने ,पीड़ित परिवार को राहत देने तथा उसके पुनर्वास के क़दम उठाने का आश्वासन देने के बजाय प्रताड़ित छात्रों के संगठन पर देशद्रोही व जातिवादी राजनीति करने का आरोप लगाने में लगा रहा।
सत्ताधारी दल के इस अमानवीय और असंवेदनशील रुख़ से कई सवाल  उठ रहे हैं। सर्वप्रथम, प्रशासन के हर स्तर पर नागरिकों की अवांछित गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए गुप्तचर संस्थाएँ हैं। यदि कोई नागरिक अवांछित गतिविधियों में लिप्त रहता है तो उसके विरुद्ध सरकारी विभाग कार्यवाही करते है। फिर किस अधिकार के तहत केंद्रीय श्रम मंत्री इन छात्रों के संगठन को देशद्रोही बता रहे हैं। सत्ताधारी दल से जुडे विद्यार्थी संगठन  का विरोध करना राष्ट्रद्रोह कैसे हो सकता है। आम नागरिक पर इस प्रकार के अवांछित आरोप लगाने वाले नेताओं के विरुद्ध कोई कार्यवाही क्यों नहीं होनी चाहिये। क्या आम नागरिक की ऐसे आरोप लगने से मानहानि नहीं होती। एच आर डी मिनिस्टर ने कैसे श्रम मंत्री के इन अनर्गल आरोपों वाले पत्र को कठोर कार्यवाही के लिए विश्वविद्यालय को भेज दिया। उन्हें पूछना नहीं चाहिये था कि अवांछित गतिविधियों की जाँच के लिए अलग तंत्र है जो अपना काम प्रोफेशनली करता है। इसलिए वह अनर्गल आरोपों वाले इस पत्र पर कार्यवाही नहीं करेगी। यदि कार्यवाही करने का आदेश उनके मंत्रालय ने दिया है तो क्या उन्हें इसकी ज़िम्मेदारी लेकर पश्चाताप नहीं करना चाहिये। जितनी ज़ोर से वह टी वी चैनलों में दहाड़ती थी विरोध दलों की कमियाँ गिनाती थी। उतनी ही शिद्दत से अपनी गल्ती क्यों नहीं मान लेती और परिणाम भुगतने को तैयार क्यों नहीं होती।शायद उसके लिए जिस साहस की जरुरत होती है वह दहाड़ने से नहीं आती। यदि यह सब करने की हिम्मत नहीं है तो कम से कम सत्तारूढ़ दल आज यह रिज़ोल्यूशन तो ले ही सकता है कि भविष्य में अपनी आलोचना तथा अपनी विचारधारा व नीतियों का विरोध करने वालों के घर ऐसे नहीं उजाड़ेगा। जैसे रोहित की माँ का उजाड़ा है। विरोध करने वाले ही सही पर वे इस देश की अमानत हैं इसका भविष्य हैं ।उससे खिलवाड़ करने का अधिकार सत्तारूढ़ दल को लोकतंत्र में नहीं होता।
हैदराबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय के अलावा उच्च शिक्षा के अंय संस्थानों में दलित व आदिवाली छात्रों के साथ संस्थागत भेदभाव होता रहा है। रोहित के बलिदान के बाद दलित व आदिवाली छात्रों के साथ इस तरह के संस्थागत भेदभाव को समाप्त करने के लिए सभी उच्च शिक्षा के संस्थानों में प्रभावी कदम उठाए जाने चाहिये। यही रोहित को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।





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