शुक्रवार, 29 अगस्त 2008

आधुनिक सभ्यता का संकट

भाग दो
जिम्मेदारी सरकार की है। हम तो सिर्फ मलाई चाटते हैँ
बिहार की बाढ़ से हुई तबाही के हृदय-विदारक दृष्यों का हवाई सर्वेक्षण करने के बाद बिहार के नेताओं को संवाददाताओं से बतियाते टी.वी. के चैनल दिखा रहे थे।नेताओं के कपड़े धवल सफेद थे उनके चमकते दमकते चेहरे सुख सुविधाओं से लैस सम्पंन जीवन की अभिव्यक्ति थे। उनके व्यक्तित्व को कही पर भी बाढ़ की विभीषिका ने उद्वेलित किया हो ऐसा नही लग रहा था। उनके चेहरों में बाढ़ पीड़ितों के दर्द कोई झलक नही दिख रही थी।बिना पलक झपकाए ये नेतागण बिहार सरकार को इस त्रासदी का दोषी बता रहे थे।
दोषी कोई भी हो आम जनता तबाह हुई है उसके दुख दर्द में उसकी तन मन धन से सेवा करने का संकल्प किसी नेता ने व्यक्त नही किया। एक ऐसी विपदा जिसमें 40लाख लोग अपना सब कुछ खो चुके हों अकेले सरकार पर राहत और पुनर्वास की जिम्मेदारी डाल देना बाढ़ पीड़ितों के साथ भद्दा मजाक नही तों नही तो क्या है। स्मरणीय है कि ये नेता भी गरीब तबकों से आते हैं। इसी गरीब व असहाय जनता ने इनको सत्ता की गलियों में पहुचाया है.। आज ये कानूनी और गैर-कानूनी तरीके से अरबों रुपये कमा रहे हैं।इस कमाई का कुछ हिस्सा यदि उन्ही गरीब गुरबा के राहत पुनर्वास में लग जाता तों उसका फायदा भी अगले चुनाव में इन्ही नेताओं को होता।
दूसरा बिहार सरकार को दोषी ठहराने के लिए हवाई सर्वेक्षण की क्या आवश्यकता थी। यह काम तो बिना हवाई सर्वेक्षण किये भी संवाददाताओं को बुला कर भी किया जासकता था। जो संसाधन हवाई सर्वेक्षण में खर्च हुए उनको राहत काम में लगाया जासकता था। इन नेताओं के हवाई सर्वेक्षणों से राहत काम में कितनी रुकावट आती है वह एन डी टी वी संवाददाता बता रहा था। मधेपुरा बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों के तीन घंटे की यात्रा के दौरान पहले तो अधिकतर क्षेत्रों में कोई राहत कर्मी दिखे ही नही। जहां इक्का दुक्का नावें थी भी तो काम नही कर रही थी। ईधन नही था। सरकारी कर्मचारी कह रहे थे जब तक प्रधान मंत्री का हवाई सर्वेक्षण चल रहा है तब तक कुछ भी नही किया जासकता है। यहां पर यह भी विचारणीय है कि विपदा के समय सीमित संसाधनों का दुरुपयोग नेताओं के दौरों पर होना चाहिये या पीड़ितों को राहत पहुचाने में। इस सवाल पर तय नीति होनी आवश्यक है। अन्यथा विरोधी दल सरकार पर असंवेदनशील होने का इलजाम लगाते हैं।
हवाई जहाज से उतरकर प्रधान मंत्री ने दस अरब रुपये व सवा लाख टन अनाज मुप्त देने की घोषणा कर दी। इस घोषणा को सुनते ही पी. साइनाथ की प्रसिद्ध पुस्तक ऍव् रि बडी लव्स अ गुड ड्राउट की याद ताजा होगई। इस घोषणा के बाद टी वी पर मुस्कराते हुए बिहार के मुख्य मंत्री अपनी रेडियो पर की गई अपील की पुनरावृति कर रहे थे।उनकी उन लोगों से अपील थी जो अभी तक प्रभावित नही हुए है परन्तु बारिष की निरन्तरता के कारण कोशी के टूटे तटबन्ध की चौड़ाई और बढ़ने का खतरा था। ऐसी हालत में संभावित क्षेत्रों के लोगों से मुख्य मंत्री बाढ़ आने से पहले ही राहत शिविरों में शरण लेने की अपील कर रहे थे। उनके चमकते दमकते चेहरे तथा हाव भाव से भी इस बिन बुलाए आई बिपदा से निपटने की चिंता का नामोनिशान भी नही था।लोगों के लिए इधर खाई उधर कुआं है। घर छोड़कर राहत शिविरों में जाते हैं तो पीछे से चोर लुटेरे घर लूट रहे हैं । सरकार माल की सुरक्षा के किसी प्रबंध का दावा भी नही कर रही है।जब सुरक्षा बल जम्मू काश्मीर,ओड़िसा में राष्ट्रवादी, प्रांतवादी, हिंदूवादियों द्वारा की जारही हिंसा और आगजनी से निपटने में लगे हों तो आम आदमी की सुरक्षा की जिम्मेदारी कौन निभाएगा।
उधर ओडिशा के कंधमाल जिले में 23 अगस्त को विश्व हिन्दु परिषद के लक्ष्मणानंद सरस्वती हत्या कर दी गई। प्रदेश के सत्तारूढ़ गठबंधन में सहयोगी होने के बाबजूद स्वयं को राष्ट्रवादी कहने वाले भारत में हिंदू हितों के सबसे बड़े स्वयंभू ठेकेदार हिंसा पर उतर आये।सार्वजनिक और निजी सम्पत्ति जलाई गई। एक महिला को जिंदा जला दिया गया। ये तथाकथित हिंदू हितों के सबसे बड़े स्वयंभू ठेकेदार भूल गए कि हिंदू धर्म ग्रंथों में लिखा है जहां नारी की पूजा होती है वहां ईश्वर की वास करते हैं।क्या ये हिंदू धर्म के स्वयंभू ठेकेदार बताएँगे कि जो नारी को जिंदा जला देते है वे कौन हैं और जिस जमीं पर यह जघन्य अपराध हुआ है वहां किसका निवास होसकता है। 29 अगस्त के जनसत्ता में छपी फोटो में एक उदास बच्चा अपने जले घर के प्रागण खड़ा है पास ही घर की औरतें जले घर से बचा खुचा अनाज बटोर रही हैं।क्या वह उदास मासूम ,वह जलकर राख हुआ घर भारतीय का नही हैं।इस देश में करोड़ों लोगों को पास पेट भरने अनाज नही है और ये दंगाई लोगों का बहुत जतन से सहेजा अनाज जला कर राख कर आये। यह कौन सा हिंदू धर्म है यह कौन सी भारतीयता है। हिंदुत्व के नाम पर यह कैसी दानवता है। ओडिसा में विनाश करने उठे हाथ बिहार में बाढ़ पीड़ितों को बचाने के लिए नही उठे है। कारण बाढ़ पीड़ितों के राहत में सहयोग देने से हिंदू वोटों ध्रुवीकरण नही होता। ध्रुवीकरण नही होने से सत्ता मे आने का रास्ता साफ नही होता। सारा खेल वोटों का है। हिंदूवादी राष्ट्रवादी तो महज मुखौटा है जो आम जनता को बरगलाने के लिए पहना जाता है।
इस देश का दुर्भाग्य है कि यहां का जनमानस सब समझते हुए भी सांप्रदायिक संगठनों के बहकावे आजाता है और इनकी काठ की हाडी बार बार चूल्हे पर चढ़ जाती है।मध्य वर्ग भी यह जानते हुए भी कि यह सब सत्ता में आने की रणनीति है इनका समर्थन करता दिखता है।इनके द्वारा की गई हिंसा में जो जान माल का नुकसान होता है उसके लिए भारतीय जन मानस नही कल्पता। सरकारी संपत्ति का नुकसान हमें अपना नुकसान नही लगता। इसलिए बसो की तोड़ फोड़ आगजनी हमें उद्वेलित नही करती है। ऐसा भान होता है कि अभी भी हम औपनिवेशिक मानसिकता से नही उबर पाए है।
जारी है

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