“जवान होरहे हैं एड्स के शिकार” 23 दिसंबर की जनसत्ता में यह समाचार पढ़ा तो भारत में बिट्रानी राज की याद आगई। बिट्रानी के राज में अंग्रेज सिपाहियों को इग्लेंड में शादी कर अपने परिवार के साथ भारत आकर नौकरी करने की आजादी नही थी। न ही वे भारत आकर अपना घर बसा सकते थे। ये अंग्रेज सिपाही समाज के निम्न वर्गों से लिये जाते थे और बहुत ही थोड़े वेतन में भर्ती किये जाते थे।वेतन इतना कम कि उससे परिवार का भरण व पोषण होना नामुमकिन था ।इसलिए उनका मन बहलाने के लिए हर मिलिट्ररी कैंन्टोनमैंन्ट के साथ साथ लाल बाजार(वेश्यालय) की भी व्यवस्था होती थी।(अंग्रेज पत्रकार अल्फ्रेड डायर ने सेंटिनल साप्ताहिक पत्रिका में इस समस्या पर कई लेख लिखे। अपने एक लेख में डायर ने जून 1886 के सेकेंड चैशायर रेजिमेंट के आफिस कमांडिग के एक पत्र को उद्धृत किया।इस पत्र में चैपमैन सेकेंड चैशायर रेजिमेंट के आफिस कमांडिग ने अंबाला के मजिस्ट्रेट से पर्याप्त संख्या में आकर्षक लड़कियों को छावनी के लाल बाजार के लिए जुटाने के लिए अनुरोध किया था।) इस मन बहलाने की कीमत इन जवानों को अपने स्वास्थ्य से देनी पड़ती थी। अंग्रेज सैनिक बड़ी संख्या यौन रोगों के शिकार होरहे थे। इससे ब्रितानी सरकार को उनके इलाज में खर्च हुई राशि तथा उनकी छुट्टी के समय के वेतन का भार उठाना पड़ रहा था। ब्रितानी सरकार के प्रशासक इसे फिजूल खर्ची मानते थे।अतः इसके निवारण के उपाय खोजे जाने लगे।
अंग्रेज सैनिकों में यौन रोगों की दर को कम करने के लिय़े लाक अस्पताल खोले गए। इन अस्पतालों में बीमार वैश्याओं को जबरन् तब तक रखा जाता था जब तक वे पूर्णरूप से स्वस्थ नही हो जाती थी। लाक अस्पतालों में बीमार यौन कर्मियों के साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता था।सैनिकों में यौन रोगों की दरें बढ़ रही थी। ब्रितानी सरकार को इन अस्पतालों पर खर्च होरहा धन अखर रहा था।इस समय के सरकारी दस्तावेजों में संबंधित अधिकारी इन अस्पतालों के रख रखाव की लागत की तुलना सैनिकों को विवाह की इजाजत देकर उनको परिवार के भरण पोषण लायक वेतन देने में होने वाले व्यय से अपनी रपटों में कर रहे थे। यहां यह बताना प्रासंगिक है कि भारतीय सैनिकों में यौन रोगों की दरें कम थी। इसका कारण उनका संतुलित पारिवारिक जीवन माना गया।
आजाद भारत के सैनिक तथा अर्ध सैनिक बलों के जवान भी समाज के कमजोर तबकों से ही आते हैं। उनके और अफसरान के वेतन, सेवा शर्तों , आदि में धरती व आसमान का फर्क होता है। कठिन परिस्थितियों में काम करने को मजबूर ये सैनिक असंख्य मानसिक और शारीरिक रोगों का शिकार होरहे है।अंग्रेजी सरकार की भांति जनता द्वारा चुनी अपनी सरकारों को भी जनता के इन सपूतों को संतुलित, समृद्ध पारिवारिक जीवन जीने का वातावरण उपलब्ध कराने की चिंता नही है।
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