पश्चिम बंगाल सरकार सिंगुर में किसानों की उपजाऊ जमीन रतन टाटा को लखटकिया कार बनाने के लिए दी गई। जमीन मालिक किसानों और जोतदारों ने विरोध किया तो अच्छा मुवावजा देने का भरोसा दिया गया । फिर भी कुछ लोगों ने न्यायालय में गुहार लगाई। न्यायालय ने सरकारी जमीन अधिग्रहण को वैध बताया। परन्तु खेती की जमीन पर कारखाना लगाए जाने से बेकार हुए लोगों के पुनर्वास की चिंता न्यायालय ने नहीं की। बताया जारहा है कि टाटा को उपजाऊ जमीन देकर गरीबों के भयंकर जनसमर्थन से सत्ता में आई सरकार ने करीब 10,000 खेतीहर मजदूरों को भुखमरी के कगार पर ला दिया।इनमें से एक ने तो आत्महत्या भी कर ली। इन मजदूरों को न तो कोई मुआवजा मिला और न ही टाटा की लखटकिया कार फैक्टरी में नौकरी मिलने का आश्वासन।ऐसे में इनके सामने रोजी रोटी की समस्या मुह बांए खड़ी है। केन्द्र तथा राज्य सरकार के पास इनके भविष्य को सवारने की कोई योजना नही है। रतन टाटा तो खैर दो पहिया चालकों के लिये चार पहिये वाली सस्ती गाड़ी का जुगाड़ करने की चिंता में पतले हुए जारहे हैं। उनसे इन भूखे लोगों के लिए रोटी जुटाने के लिए किसी कारगर योजना की उमीद करना बेमानी ही है। ऐसी योजना से टाटा को लखटकिया कार योजना की तरह लाभ भी तो नहीं होगा।अब लकटकिया कार के लिए माकूल जमीन के साथ साथ सरकार ने नागरिक संमान से भी नवाज दिया है । इसप्रकार गणतंत्र दिवस के अवसर पर इन गणों को भूखमरी के कगार पर ढ़केलने वाले व्यक्ति को पद्म विभूषण से नवाज कर हमारे देश के तंत्र ने हासिये पर खड़े लोगों के जख्मों पर नमक डाल कर जो हिंसा की उसका प्रतिकार या समाधान क्या होगा इस प्रश्न पर गंभीरता से सोचने विचारने की आवश्यकता है। जब जीने के मूल अधिकार के लिए सर्वाधिक आवश्यक रोजगार के साधन कार बनाने के लिए समाप्त कर दिए जांय और सरकार के तीनों अंग इस असंवैधानिक कदम पर अपनी मुहर लगा दें तो आम इंसान अपनी समस्या के निराकरण के लिए किसके पास जाएगे। हताश होकर यदि वे हिंसा का रास्ता अपनाते हैं तो इसकी जिम्मेदारी किसकी होगी।जनतंत्र में सरकार पर उसकी नीतियों से उपजी हिंसा की जवाब देही तो होनी ही चाहिये ना।
हमारी व्यवस्था में इस प्रकार की हिंसा आम होगई है।1984 में जिन कांग्रेसी नेताओं पर सिख विरोधी दंगे फैलाने का आरोप लगा चुनाव जीतने के बाद उनको मंत्री पद से नवाजा गया। गुजरात में तो हालात और भी बदतर हैं। चुनाव जीतने के बाद मोदी को भारतीय जनता पार्टी ने अपने नेताओं के लिए आदर्श बना दिया है। जिन लोगों ने अपने परिवार के सदस्य इन दंगों में खोए हैं उन्हें ऐसे दंगे करवा कर जीते चुनावों पर कितनी श्रद्धा होगी समझा जा सकता हैश
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1 टिप्पणी:
Kshama Roman mein hindi likh raha hoon yadi aap ise devnagri mein likh de to kripa hogi. Yadi ham sab log mil kar ye nirnay le lein ki Tata ki car koi bhi tab tak nahin khareedega jab tak un logon ko Nyaya nahin mil jaata, to Tata aur sarkar donon hi unhe nyaya de denge. Kyonki aaj ki duniya mein paise ki hi baat smajhi jati hai.
Par baat ye hai ki kitne aisa karenge. Aur kaun sa media logon ko aisa karne ko bolega.
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