गुरुवार, 4 सितंबर 2008

सांप्रदायिकता का यह दंश तो भारतीय नही है।

आज हिंदुओं की अस्मिता की रक्षा के नाम पर जिस तरह की हिंसा हिंदूवादी संगठन फैला रहे हैं उस तरह की हिंसा की परंपरा न भारतीय है और न ही हिंदू है। बिनौय कुमार सरकार का हिंदू राजनीतिक दर्शन पर एक लेख दिसंबर 1918 के पोलिटिकल साइंस क्वाटरली, पेज 482-500 में छपा।इस लेख में बिनौय कुमार सरकार लिखते हैं कि भारत कट्टर प्रकार की थिआँक्रसि कभी नही था। यहां राज्य धार्मिक संस्थाओं के अधीन कभी नही रहा। हिंदू राज्यों की एक अंय विशेषता यह थी कि वे पूरी तरह से धर्म निरपेक्ष थे। भारत में धर्म का राजनीति पर कभी भी प्रभुत्व नही रहा। हमेशा ही राज्य का धार्मिक संस्था से अलग स्वतंत्र अस्तित्व रहा। धार्मिक संस्थाओं ने कभी भी राज्य की शक्तियां हासिल करने की कोशिश नही की। धार्मिक संस्थाओं ने कभी राज्य के मामलों में हस्तक्षेप नही किया। इसके विपरीत यूरोप में चर्च और राजा के बीच अक्सर टकराव होते रहते थे। चर्च धार्मिक और भौतिक दोनों क्षेत्रों को अपना नियंत्रण में रखना चाहता था। इसके अलावा पोप अपने कार्डिनल तथा लें गिट्स के माध्यम से भी यूरोपीय राज्यों के अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप करते रहते थे । हिंदू धार्मिक संस्थाओं का इस प्रकार का इतिहास नही रहा है।

13वीं सदी के प्रारंभ से भारत में इस्लाम का प्रादुर्भाव हुआ। पर भारत के इतिहास में कोई मुसलिम काल नही है इस्लाम के भारत आगमन के पश्चात भी यहां का कोई हिस्सा किसी विदेशी शक्ति के अधीन नही था। सर्व प्रथम इस्लाम ने राजनीतिक तौर पर भारतीयों की आजादी पर अंकुश नही लगाया। दूसरा पूरे देश में कभी भी मुसलमान राजाओं का शासन नही रहा। तीसरा मुसलमान राजाओं व हिंदू राजाओ के आपसी रिस्ते,मुसलमान राजाओं और उनकी हिंदू प्रजा के बीच के रिस्ते,हिंदू राजाओं तथा उनकी मुसलमान प्रजा के बीच के रिस्ते कभी भी रोमन कै थँलिक –प्रा टिस्टैंट के रिस्तों की तरह कटु तथा हिंसक नही रहे। आमतौर पर हिंदू राजाओं के गैर हिंदू प्रशासनिक अधिकारी तथा गैर हिंदू राजाओं के हिंदू सलाहकार व सेनापति होते थे। पुजारी का प्रभाव केवल राजा की तथा जनता निजी धार्मिक जिंदगी तक सीमित था। राज्य की समितियों में पुजारी का दखल केवल तीज त्यौहारों तक सीमित होता था। हर शासक का नैतिक आचरण पर अवश्य धार्मिक मूल्यों के अनुसार होता था। मध्य काल के भारत के राजनीतिक इतिहास में उस प्रकार की अशांति और असुरक्षा कभी नही रही जिस प्रकार रोमन साम्राज्य के उत्थान व पतन के समय दिखी, या इग्लेंन्ड के वेल्स, आइरिस, व स्काट की लड़ाइयों में, या इग्लेंन्ड और फ्रांस के बीच सौ साल के युद्ध में , या इटली के गणराज्यों के मध्य हुए संघर्ष में,या इग्लेंन्ड के गृह युद्ध में, व अन्य यूरोपी देशों में हुए युद्धों में दिखी।
समाज में सारी अच्छाई का स्त्रोत नीति शास्त्र को माना गया जिस प्रकार शरीर को हृष्ट पुष्ट रखने के लिए पौष्टक आहार आवश्यक होता है उसी प्रकार व्यक्ति एवं राज्य के जीवन में स्थायित्व लाने के लिए नीति शास्त्र के सिद्धांतों का अनुकरण आवश्यक था।हिंदू राजाओं के लिए नीति शास्त्र के सिद्धांतों का पालन करना आवश्यक था। नीतिशास्त्र के सिद्धांतों का अनुकरण करके ही राजा प्रजा दोनों के ही हितों का संरक्षण व संवर्धन होसकता है ऐसी मान्यता थी। चूंकि राजा पर अपनी प्रजा के हितों के संरक्षण संबर्धन की जिम्मेदारी थी इसलिए राजा के लिए नीति शास्त्र के सिद्धांतों का प्रशिक्षण आविश्यक था।
16वी सदी में अब्दुल फजल ने आइने अकबरी में हिंदू नियमों कानूनों का संक्षिप्त विवरण पारसी भाषा में छापा। अब्दुल फजल अकबर के मंत्री थे. अब्दुल फजल ने लिखा कि बुद्धिमान राजा अपने दरबार से भ्रष्ट व षडयंत्रकारियों का सफाया कर देगा।अपने इस महत्वपूर्ण ग्रंथ में अब्दुल फजल ने राजा की तुलना माली से की गई है। जैसे माली बगीचे से खरपतवार उखाड़ कर एक ओर कर देता है और बगीचे को सुंदर बना देता है। साथ ही बगीचे की रखवाली के लिए बाड़ भी चारों ओर उगाता है। ताकि कोई बाहरी तत्व बगीचे में नहीं घुस सके। उसी प्रकार राजा अपने राज्य व प्रजा की देखभाल करता है। अपने प्रशासकों व प्रजा के बीच द्वंद होने पर राजा को प्रजा के साथ खड़ा होना होता था। शुक्र के नीतिशास्त्र के अनुसार राजा को भ्रष्ट लोगों, चोरों उचक्कों,बतमाशों, व अन्य प्रकार की नकारात्मक प्रवृति के लोगों को राज्य का संरक्षण नही देना चाहिये। संक्षेप में बिनौय कुमार सरकार का मानना है कि धार्मिक उन्माद फैला कर समाज में हिंस फैलाना न हिंदू धर्म दर्शन का हैं और न ही कई धर्मों का गुलदस्ता भारतीय धर्म दर्शन का।

1 टिप्पणी:

Satyajeetprakash ने कहा…

दरअसल यह छद्म-धर्म-निरपेक्ष लोगों द्वारा तैयार किया गया माहौल है, और यह धर्मनिरपेक्ष जनता को यह सब करने के लिए उसका रहा है.