कई साल पहले 15जुलाय के दिन बहादुर मनीपुरी महिलाओं ने अनूठा सत्याग्रह किया। सत्ता के मद में चूर सरकारी तंत्र खास कर सुरक्षा तंत्र द्वारा किये जारहे यौन शोषण के विरोध में उन्होंने स्वय को बेवस्त्र कर जलूस निकाला और सरकारी तंत्र खास कर असम राइफल्स को उन सत्याग्रहियों के यौन शोषण करने की चुनौती दी।जागरूक और संवेदनशील मनीपुरी महिलाओं के इस कदम ने पूरे मानव समाज को हिला कर रख दिया। जगह जगह आम्ड फोरसेस स्पेशल पावर्स एक्ट की भर्तसना होने लगी और इसे हटाने की मांग जोर पकड़़ने लगी। उधर इरोम शर्मीला इसी मांग को लेकर भूख हड़ताल पर हैं डाक्टर उन्हें नलियों के माध्यम से जबरदस्ती पोषण देकर जिन्दा रखे हैं। परन्तु मनीपुर से अभी तक आम्ड फोरसेस स्पेशल पावर्स एक्ट नही हटा है।आम जन का उत्पीड़न बदस्तूर जारी है।
पिछले 25 सालों से भीअधिक समय से नर्मदा बचाओ आंदोलन की अग्रणी मेधा पाटकर एवं अन्य कार्यकर्ता बाध विस्थापितों के हक में समय समय पर अनगिनत सत्याग्रह किये हैँ पर वांछनीय सफलता नही मिली है। कभी थोड़ी बहुत राहत न्यायपालिका से अवश्य मिली है।पर महत्वपूर्ण मौकों पर सर्वोच्च अदालत ने भी दूसरी तरफ देखना ही उचित समझा। हां, लोगों में जागरूकता अवश्य बढ़ी है। संघर्ष करने का आत्मबल उन्हें मिला है।पड़ोंसी देश म्यांमा में भी आन सा सू की जनतंत्र की स्थापना के लिए सालों से सत्याग्रह किया।जन समर्थन मिला और कुछ हद तक सत्ता के चूलों को हिला पाई हैं।आज वह जेल की सीकंजों से बाहर हैंअन्ना हजारे के जनलोकपाल कानून के लिए किये गए सत्याग्रह ने तो पूरे देश को हिला दिया। पर कानून नहीं बना।
जिस प्रकार महात्मा गांधी चाहे दक्षिण अफ्रिका हो या भारत असत्याग्रही तत्वों की आंख की किरकिरी बने रहे क्या उसी प्रकार ये भी असत्याग्रही तत्वों के लिए चुनौती बने।सत्याग्रह आंदोलन के साथ गांधी ने सत्याग्रह का दर्शन हिन्द स्वराज लिखा जिसको उनके समर्थकों और विरोधियों दोनों ने खारिज कर दिया। पर अपने सत्याग्रह के आंदोलनों के माध्यम से वह पश्चिमी सभ्यता की सर्वत्र व्याप्त मान्यता पर सवाल उठाने में सफल रहे। उन्होंने एक नई संस्कृति का प्रतिपादन किया। आज हमें ऐसा कुछ भी नही दिख रहा है समाज में बाजार की पैठ बढ़ती जारही है। इससे मन में कई सवाल उठते हैं मसलन् क्या गांधी की आम जन से संवाद करने की क्षमता आज के सत्याग्रहियों से कहीं अधिक थी। य़ा गांधी जी लोगों की नब्ज पकड़ना जानते थे। या गांधी जी के लिए सत्याग्रह, मांग मनवाने के लिए संघर्ष का तरीका न होकर जीवन दर्शन था। सत्य के बगैर अहिंसा सम्भव नही।क्या गांधी के लिये सत्याग्रह महज सत्य को खोज का माध्यम था । इस खोज में वे किस हद तक सफल रहे। क्या आज भी सत्य की खोज के लिए सत्याग्रह होरहे हैं।ये कई प्रश्न है जिनपर आज के सत्याग्रहियों को चिंतन मनन करना चाहिये।
पिछले 25 सालों से भीअधिक समय से नर्मदा बचाओ आंदोलन की अग्रणी मेधा पाटकर एवं अन्य कार्यकर्ता बाध विस्थापितों के हक में समय समय पर अनगिनत सत्याग्रह किये हैँ पर वांछनीय सफलता नही मिली है। कभी थोड़ी बहुत राहत न्यायपालिका से अवश्य मिली है।पर महत्वपूर्ण मौकों पर सर्वोच्च अदालत ने भी दूसरी तरफ देखना ही उचित समझा। हां, लोगों में जागरूकता अवश्य बढ़ी है। संघर्ष करने का आत्मबल उन्हें मिला है।पड़ोंसी देश म्यांमा में भी आन सा सू की जनतंत्र की स्थापना के लिए सालों से सत्याग्रह किया।जन समर्थन मिला और कुछ हद तक सत्ता के चूलों को हिला पाई हैं।आज वह जेल की सीकंजों से बाहर हैंअन्ना हजारे के जनलोकपाल कानून के लिए किये गए सत्याग्रह ने तो पूरे देश को हिला दिया। पर कानून नहीं बना।
जिस प्रकार महात्मा गांधी चाहे दक्षिण अफ्रिका हो या भारत असत्याग्रही तत्वों की आंख की किरकिरी बने रहे क्या उसी प्रकार ये भी असत्याग्रही तत्वों के लिए चुनौती बने।सत्याग्रह आंदोलन के साथ गांधी ने सत्याग्रह का दर्शन हिन्द स्वराज लिखा जिसको उनके समर्थकों और विरोधियों दोनों ने खारिज कर दिया। पर अपने सत्याग्रह के आंदोलनों के माध्यम से वह पश्चिमी सभ्यता की सर्वत्र व्याप्त मान्यता पर सवाल उठाने में सफल रहे। उन्होंने एक नई संस्कृति का प्रतिपादन किया। आज हमें ऐसा कुछ भी नही दिख रहा है समाज में बाजार की पैठ बढ़ती जारही है। इससे मन में कई सवाल उठते हैं मसलन् क्या गांधी की आम जन से संवाद करने की क्षमता आज के सत्याग्रहियों से कहीं अधिक थी। य़ा गांधी जी लोगों की नब्ज पकड़ना जानते थे। या गांधी जी के लिए सत्याग्रह, मांग मनवाने के लिए संघर्ष का तरीका न होकर जीवन दर्शन था। सत्य के बगैर अहिंसा सम्भव नही।क्या गांधी के लिये सत्याग्रह महज सत्य को खोज का माध्यम था । इस खोज में वे किस हद तक सफल रहे। क्या आज भी सत्य की खोज के लिए सत्याग्रह होरहे हैं।ये कई प्रश्न है जिनपर आज के सत्याग्रहियों को चिंतन मनन करना चाहिये।
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